कोई हैं यहाँ
------------
खड़ा हूँ
बांस के जंगल में
प्रेम अधरों पे लिए पर
कोई बांसुरी नहीं मिल रही
शब्द भी हैं
सजे-सजे से पर
कोई कहानी नहीं मिल रही
आंख भी है
लाल-लाल सी पर
कोई निशानी नहीं मिल रही
हूँ खड़ा
एक मीनार पे
उगा-उगा सा पर
कोई जमीं नहीं मिल रही
अश्क हैं
थमे-थमे से पर
कोई रवानी नहीं मिल रही
तुम खड़े हो
पास-पास से पर
कोई दीवानी नहीं मिल रही
रामकिशोर उपाध्याय
21.10.2014
खुद के अंदर से ही देखना होगा सब कुछ ...
ReplyDeleteदिगम्बर नासवा जी असली खोज यही से शुरी होती हैं ... आभार
ReplyDelete