के हालात बेकाबू से होके अजीयत बढा रहे हैं ,
शायद तेरी दवा की आजमाइश अभी बाकी हैं।
न मैं रोज जी रहा हूँ न मैं रोज मर ही रहा हूँ ,
शायद नये दाँव की आजमाइश अभी बाकी हैं।
तेरे हर दर पे सज़दा कर रहा हूँ परवरदिगार !
शायद मेरी सदा की आजमाइश अभी बाकी हैं।
राम किशोर उपाध्याय
शायद तेरी दवा की आजमाइश अभी बाकी हैं।
न मैं रोज जी रहा हूँ न मैं रोज मर ही रहा हूँ ,
शायद नये दाँव की आजमाइश अभी बाकी हैं।
तेरे हर दर पे सज़दा कर रहा हूँ परवरदिगार !
शायद मेरी सदा की आजमाइश अभी बाकी हैं।
राम किशोर उपाध्याय
No comments:
Post a Comment