उन्वान ' सावन' ' MAI,,,,,HOO,,,,NAA.
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छिपाके रखा महीनों दर्द अपना बेशुमार
कि मानों आँखों को था सावन का इंतजार
न करना प्यार दिल कहता रहा बार-बार
उनके तीर चल चुके थे, अपने हुए बेकार
तुम्हारी किस्मत में नहीं लिखा उनका प्यार
तुम हो जेठ की लू और वो सावन की बहार
मन पानी को तरस गया
रामकिशोर उपाध्याय
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