धन्य हे प्रभु !
किसी से मुरली बनाया और होठों से बजाया
किसी ने घुंघरू बनाकर महफ़िल में नचाया
कभी किसी पंडितजी ने घंटा बनाकर बजाया
कभी मौलवी साहेब ने नमाज का भोपू बनाया
कभी कहीं गुलाम समझा और बहुत तडपाया
न कभी किसी ने उठाया,न ही सीने से लगाया
किसी ने प्रसाधन समझकर चेहरा चमकाया
कभी किसी सत्ता मदांध के हाथों जूता खाया
फिर भी 'स्व' बचाकर आगे बढ़ता चला आया
धन्य हे प्रभु ! अजब है तेरी लीला और माया
राम किशोर उपाध्याय
किसी से मुरली बनाया और होठों से बजाया
किसी ने घुंघरू बनाकर महफ़िल में नचाया
कभी किसी पंडितजी ने घंटा बनाकर बजाया
कभी मौलवी साहेब ने नमाज का भोपू बनाया
कभी कहीं गुलाम समझा और बहुत तडपाया
न कभी किसी ने उठाया,न ही सीने से लगाया
किसी ने प्रसाधन समझकर चेहरा चमकाया
कभी किसी सत्ता मदांध के हाथों जूता खाया
फिर भी 'स्व' बचाकर आगे बढ़ता चला आया
धन्य हे प्रभु ! अजब है तेरी लीला और माया
राम किशोर उपाध्याय
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