Monday, 17 June 2013

भविष्य की राह
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सड़क पर
कड़ी धूप में
माँ पत्थर तोडती जा रही थी
पसीने से लतपथ
निहारती थी वो राजपथ            
उसका नौनिहाल
पास ही खेल रहा था
वह सपने बुनती जा रही थी
इस सड़क पर बीस साल बाद
उसका नौनिहाल
बड़ी कार चला रहा होगा
तभी हथोड़ा फिसला
हाथ पर पड़ा
वह दर्द से  चीख उठी
ऊँगली से खून बह रहा था
पास में भविष्य
खड़ा मुस्करा रहा था
घबराओं मत माँ
मैं ऐसे ही स्वप्न पर चोट करता हूँ
ऐसे ही दर्द देता है
देखता हूँ  धैर्य
और  अक्सर लोग
परिश्रम का हथोडा फेंक देते हैं
जो पट्टी स्वयम बांध कर
फिर से पत्थर पर प्रहार करता है
वही मैं हार स्वीकार करता हूँ
और उसी का बेटा
आनन्द की गाड़ी चला रहा होता है
और
वह पीछे बैठकर
मुझे देख रहा होता हैं

रामकिशोर उपाध्याय

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