Tuesday, 7 May 2013

तेज़ आंधियों ने जला डाला   प्यार का आशियाना
दिल बांस की दीवारों और फूस की छत का जो था

अश्क सूख गए उसका अक्स बनाने में
वो जालिम बार-बार चिलमन गिराता

वो प्यार  नहीं सदा नफरत  करते रहे 
एक हम थे जो दिल में लों जगाते रहे 


आओ आज फिर से जीने एक सौदा करे
एक नयी चाहत तलाशने का वायदा करे
टूटी हुयी कश्ती को ढोने से क्या फायदा
बस बेख़ौफ़ लहरों से लड़ने का इरादा करे


आओ आज फिर एक तमाशा करे
नए भाषण और जुमले ठोका करे
कुंद  खंजर को फिर से तराशा करे
धीरे से लोगो की पीठ में भोंका करे   

राम किशोर उपाध्याय 

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