कल और आज
पिताजी के पास थी
एक साईकल फिलिप्स की ----
कही भी कभी भी रुक जाती थी
बस एक इशारे पे------
हमें ढोते -ढ़ोते
कभी भी मना नहीं करती
आज मेरी कार ऐसे नहीं रूकती
कभी बेटा मना भी कर देता
बैठने से ,,,,,,,,,,,,,,,,,,
मै मचल जाता था अक्सर
मिठाई की दुकान के सामने आकर
पिताजी मेरी मांग पूरी करते
आज मेरा बेटा
जिद नहीं करता
पता नहीं कब ऑर्डर देता
सीधे ही पिज़्ज़ा का बिल थमा देता
और मै चुपचाप
पर्स को निकालने लगता ,,,,,,,,,,,,,,,
राम किशोर उपाध्याय
पिताजी के पास थी
एक साईकल फिलिप्स की ----
कही भी कभी भी रुक जाती थी
बस एक इशारे पे------
हमें ढोते -ढ़ोते
कभी भी मना नहीं करती
आज मेरी कार ऐसे नहीं रूकती
कभी बेटा मना भी कर देता
बैठने से ,,,,,,,,,,,,,,,,,,
मै मचल जाता था अक्सर
मिठाई की दुकान के सामने आकर
पिताजी मेरी मांग पूरी करते
आज मेरा बेटा
जिद नहीं करता
पता नहीं कब ऑर्डर देता
सीधे ही पिज़्ज़ा का बिल थमा देता
और मै चुपचाप
पर्स को निकालने लगता ,,,,,,,,,,,,,,,
राम किशोर उपाध्याय
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