Thursday, 25 April 2013

वजूद मिट रहा है
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लहरों पे चाँद हिल रहा  है 
शायद कोई बुला रहा है
    
इन आँखों में एक ख्वाब  हैं 
जो बिन पंखो के उड रहा है

तपन सूरज की अब कहाँ  है
आसमा चादर तान रहा है

आज तो वस्ल की रात है
तारा भी न कोई सो रहा है

खामोशी शोर कर रही है
मानो वजूद मिट रहा है

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