न हो हताश
असीम नभ के अदृश्य छोर तक
पाँखे न पसार पाने पर,
न हो निराश
धरा के सुदूर कोनों तक
डग न भर पाने पर ,
न हो प्यास
मेघ की नवोदित बूंदों के मन -चातक के
मुख न पड़ पाने पर ,
न हो उदास
समुद्र के उत्थित प्रहारों के
तट न बंध पाने पर
सिक्त हो प्रभु !
जीवन अमृत से घट
खुले नित नए
संभावनाओं के पट
हो जीवन-दृष्टि विस्तृत
जो अछूती संवेदनाओं को करे स्पर्श
चखूँ नित आनंद -अमृत
प्रभु ! इस नव वर्ष .
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