Thursday, 23 June 2016

शंख हूँ मैं

रेत पर समय की
कुछ अलग सा हूँ पड़ा 
लहरों के आरोह - अवरोह से 
तट पर आ धमका 
सागर -गर्भ जनित 
मानुस के लिये
घोंघे की तरह धीरे -धीरे आता हूँ
कोई सामान्य सीप नही,शंख कहलाता हूँ
अपितु आदमी की तरह ढपोरशंख नही
करता हूँ नाद
निनाद नहीं
भोर में
साँझ में
देव के आह्वान हेतु नभ को तरंगित करता हूँ
उग्रता में
विश्व को कंपित करता हूँ
वामावर्ती
मध्यावर्ती
दक्षिणावर्ती
कुछ भी हो सकता हूँ
परंतु परहित में सदा बजता हूँ
कृष्ण के हाथ में पाञ्चजन्य
अर्जुन का प्रिय देवदत्त
युधिष्ठिर का अनंतविजय
बनकर विजय का उद्घोष करता हूँ
परन्तु काल के इतने थपेड़े खाकर भी
मैं कालकवलित नही हुआ हूँ
हूँ अभी प्रतीक्षारत
क्या तुम उठाओगे
अपने संकल्प का नाद करने हेतु बजाओगे
सोच लो
मैं शंख हूँ ,,,,,
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रामकिशोर उपाध्याय

Thursday, 16 June 2016

शांति .......



कहीं पर रोना 
कहीं पर धोना 
कहीं पर जलती कंचन काया
फिर भी लगता परचम है फहराया
लिए हुए सब बाजू में तुरुप का पत्ता
कहीं पर शान ,कहीं पर ताकत और दिखती कहीं पर सत्ता
कहीं पर उड़ता
कहीं पर गिरता
कहीं धूप तो कहीं गहरी धुँध का साया
फिर भी कहते चमन में फैली सुगंध की माया
जिधर भी देखो वन को निगल रही है अनल
घृणा और लोभ की उग रही है फसल
जन गण और मन में बढती कटुता
मिट रही है प्रेम की मृदुता
कुचल रही जनता को जनता
क्या ऐसे ही देश है बनता ?
सोचो यारों
मिलकर संग जिओ प्यारों
देखों उतर रहे नभ से यहाँ फाख्ता और कपोत
आओ मिलकर जलाये एक  प्रेम की और  एक शांति  की  ज्योत .............
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रामकिशोर उपाध्याय

Wednesday, 1 June 2016

मुसाफिर !देख समय की ओर ..........


मुसाफिर ! देख समय की ओर
मुसाफिर !देख समय की ओर ..........
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गहरी नदिया दूर है जाना
मुश्किल हैं दिल  को  समझाना
लहरें करती मिलन को शोर
मुसाफिर ! देख समय की ओर
मुसाफिर !देख समय की ओर ..........
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डूबें हैं सब गाँव नगरिया
देख, नांच रहे हैं सब ताल तलैया
चढ़ता पानी,चप्पू कमजोर ...................
मुसाफिर ! देख समय की ओर
मुसाफिर !देख समय की ओर ..........
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मेघा छाये ,मन हरसाये
बालक झट से नैय्या लाये
वन में नाचा नेह का मोर ......................
मुसाफिर ! देख समय की ओर
मुसाफिर !देख समय की ओर ..........
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मन का दादुर बोले दिन रैना
मिलन के बिना कहीं पाये न चैना
लगता खीचें कोई जैसे पतंग की ड़ोर .........
मुसाफिर ! देख समय की ओर
मुसाफिर !देख समय की ओर ..........
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ढ़लने दे तू धार अभी
चल  जायेगी पतवार  तभी
फिर होगी मिलन की भोर ..................
मुसाफिर ! देख समय की ओर
मुसाफिर !देख समय की ओर ..........
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रामकिशोर उपाध्याय