Saturday, 12 April 2014


आँखों की चमक (एक लघु कथा )
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आज उसकी बेटी को पुलिस सेवा में अफसर चुन लिया गया । पचासी वर्षीय रोशन की आँखों में चमक थी और उसे लग रहा था कि उसका जीवन सार्थक हो गया ।जब उसकी बेटी के कंधे पर स्टार लगाये जा रहे थे उसकी आँखों में वो दिन और उस रात की एक एक घटना एक फिल्म की तरह उतरती रही । 

 पांच साल पहले …… रात का झटपटा था । कुत्ते अपने उच्च स्वर में थे । तभी कई परछाईंयां एक साथ पड़ोस के घर से निकली । बूढ़े रोशन को रोज की तरह नींद नही आ रही थी । खांसते खांसते उसकी छाती पक गयी थी और खांसी की आवाज गले में रूक गयी थी । कई परछाईंयां एक साथ पड़ोस के घर से यह सोचकर निकली कि बूढ़ा रोशन सो गया हैं ।बूढ़ा रोशन  सोचने लगा  कि  इस समय कौन ही सकते हैं । पड़ोसी राधेलाल जो उनका छोटा भाई था आज ही शहर से लौटा हैं अपनी जवान बिटिया के साथ । कह रहा था कि उसके हाथ पीले करने हैं गाँव में ही ,लोगो का काफी अहसान हैं उस पर । शहर से अच्छा कमाकर लाया हैं ,ये भी बता रहा था । जाति बिरादरी को खाना खिलाना है मुनिया के ब्याह में ।  वह रेखा को प्यार से मुनिया कहा करता था । कई खयाल बूढ़े रोशन के दिमाग में उन परछाईं को लेकर उठ रहे रहे थे। एक बार सोचा कि बेटी को देखने वाले आये होंगे ,देर होने से अब लौट रहे होंगे । परन्तु वह बड़ा भाई है उसे तो बातचीत के लिए बुलाना चाहिये था ,अगले पल सोच रहा था कि शहर में रहकर आया हैं ज्यादा समझदार हो गया होगा ,इसलिए जरुरत नही समझी होगी आदि -आदि । नींद उसके पास नहीं आ रही थी और खांसी उसे चैन नहीं लेने दे रहे थी । वह खाट पर पड़ा पड़ा करवट बदल रहा था । इतनी देर अँधेरे में राधेलाल के घर जाने की हिम्मत भी नही कर पा रहा है और राधेलाल की पत्नी कैलाशो के व्यव्हार से भली भांति परिचित था कि वह  पता नही कब उसकी बेइज्जती कर दे । कैलासो ने कभी घर में किसी बनायीं नहीं थी और इसी तनातनी में वह राधेलाल को लेकर शहर चली गयी थी ।

थोड़ी देर बाद ही एक परछाई घर से और निकली और उसके घर की तरफ बढ़ी । बूढ़े रोशन काका ने लालटेन जलाई और देखा वह तो  कैलाशो थी । वह हांफ रही थी और बोली जेठ जी इज्जत बचालो । मैं मर जाउंगी पर अपनी बेटी का हाथ उस शराबी को न दूंगी । तुम्हारे भाई ने बेटी का सौदा कर लिया है। वो आज ही ले जाने की जिद कर रहे थे परन्तु उसने यह कहकर रोक दिया कि शादी धूमधाम से करेंगे । पता नहीं वे कैसे मान गए । अब आप ही कुछ करे तुम्हारा भाई शराब पीकर पड़ा है और वह उसका भी खून कर देगी अगर वो बेटी को बिदा करेगा उनके साथ । तुम्हारी भतीजी होनहार है बी.ए. में फर्स्ट आई है। वह कुछ करना चाहती हैं ,अफसर बनना चाहती है । तुम्हारा भाई हमें फुसलाकर ले आया है ,शराब की लत ने कर्जदार बना दिया और अब बेटी बेचकर कर्ज चुकता करना चाहता है ।  

बूढ़े रोशन की हड्डियों में न जाने कहाँ से जान आ गयी । वह अपने लाठी लेकर उठा और राधेलाल के घर की तरफ बढ़ चला । कैलाशो उसके पीछे पीछे चल रही थी ,उसे यकीन नहीं था कि जिस जेठ को सदा अपमानित करती रही ,वह उसके कहने मात्र से चल पड़ेगा । वह सोच रही थी रोशन अतीत की बातों से उसको दुत्कार भगा देगा । रोशन ने देखा राधेलाल धुत पड़ा था । उसने भतीजी रेखा का हाथ पकड़ा और कहाँ कि बेटी ये तेरा बाप अब नही हैं और वह उसका पिता हैं,कहकर अपने घर ले आया । अस्सी साल के रोशन में गज़ब की हिम्मत थी ,पुलिस में रहकर उसने कइयों को ठीक किया था । उसके अपनी कोई संतान न थी ,पत्नी भी उसकी कई बरस पहले परलोक सिधार गयी थी । उसको पेंशन मिलती थी । कैलाशो भी उसके पीछे आ गयी । भोर में किसी ने देखा कि राधेलाल मरा पड़ा है । लोगों  ने आकर बूढ़े रोशन को जगाया ,जिसे आज कई रात के बाद गहरी नींद आई थी। कैलाशो की आँख से एक आंसू न निकला और न ही रेखा रोई , बस टुकर टुकर देखती रही  राधेलाल की लाश को । लोगों ने राधेलाल का दाहसंस्कार कर दिया । राधेलाल मुक्त हो गया और कैलाशो और रेखा भी । कैलाशो ने भी रोशन को अपना पिता मानकर अपनी बेटी परवरिश करने लगी । रोशन ने रेखा को अच्छी कोचिंग के लिए शहर भेज दिया था और बूढ़े रोशन को जीने का कारण मिल गया । 

@ रामकिशोर उपाध्याय